Saturday, 24 November 2018

करूँगी मैं प्रतीक्षा तुम्हारी : विजया



करूँगी मैं प्रतीक्षा तुम्हारी...
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मिलना है हमारा कैसा ?
दो भटकी सी लहरों जैसा
खिले हों दो फूल साथ वैसा
क्यों रहे हम संग हमेशा ?
सोचते हो तुम यह सब तो क्या
करूँगी मैं प्रतीक्षा तुम्हारी....

विस्मृत कर सारा स्वामित्व
बोले यदि हृदय से अपनत्व
भूला कर ही अधिकार और दायित्व
संभव है संबंधों का अमरत्व
हमारे मृत प्रेम के पुनर्जन्म तक
करूँगी मैं प्रतीक्षा तुम्हारी....

मेघदूत मुझ से रूठे
गरज गगन घन टूटे
मैत्री वायुदूति से छूटे
स्वप्न सिद्ध हो झूठे
अपने हो जाये पराये तो क्या
करूँगी मैं प्रतीक्षा तुम्हारी.....

उमड़ते रहेंगे सागर
घुमड़्ते रहेंगे बादल
बहेंगे उर बीच पैनारे
तोड़ेगी नदिया किनारे
लौट आना तुम जब मन हो
करूँगी मैं प्रतीक्षा तुम्हारी....

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