Tuesday, 29 July 2014

अहम् और तुलनाए ..(हिंदी रूपांतरण-मुदिताजी)

अहम् और तुलनाए ..(हिंदी रूपांतरण-मुदिताजी)

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रहता है जीवित
अहम्
तुलनाओं के कारण

अहम् है
एक कथा
कल्पित सी
रचा जाता है
जिसे
कलम से
तुलनाओं की..

होता है पोषण
अहम् का,
भोजन से
तुलनाओं के

जन्म लेती हैं
मनोग्रंथियाँ
हीनता
और
श्रेष्ठता की
करने पर
तुलनाएं
व्यर्थ सी

बेहतर मानव
संजोये होता
ग्रंथी हीनत्व की
निज अंतर के तल में

कमतर
होता वो भी
पाले रहता
ग्रंथि उत्कृष्टता की
स्व-अंतस में

झूठी हैं
तुलनाएं सभी,
हैं अर्थहीन
और
योग्यता-विहीन भी

छोड़ दो
करना
तुलनात्मक
अध्ययन अपना
रहो बस
'स्वयं'
हो कर...

ए मित्र !!
कैसे हो सकते हो
तुम
श्रेष्ठ
अथवा
हीन
हो
तुम
यदि
'तुम'
सिर्फ 'तुम !!!!

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