Tuesday, 29 July 2014

तकते थे तुम राहें जिसकी

तकते थे तुम राहें जिसकी

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तकते थे तुम राहें जिसकी
मन में फूल बिछाए
नयन मिले थे उससे जब जब
क्यों तुम थे शरमाये,
करते क्यों थे पलकें नीची
तुम डरते, या नयना ?

स्पर्श था जिसका ,स्वप्न तुम्हारा
निकट वो जब आता था चलकर,
नज्में प्यार भरी कह कह कर
छू लेता था हृदय निरंतर,
सिमट स्वयं के खोल में जाते
बंदी तुम थे या कारा वह ?

जिसके कदमों की आहट को
सुनने को व्याकुल थे,
मधुर मिलन की सुखद घड़ी को
जीने को आकुल थे,
हो पुलक धड़कन की थपकी पर
ढकते क्यूँ थे द्वार ?

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