Wednesday, 30 July 2014

सावन...

सावन...

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विरह मिलन
दोनों ही के,
एहसास लिये है
सावन...

बदरा उमड़े
हैं नयनों में,
रिमझिम रिमझिम
बरखा,
धुल गए हैं
मैल अंतस के
दिल ने दिल को
निरखा,
आगोश में लेकर
सूरज को
की है बादल ने
छावन,
विरह मिलन
दोनों के,
एहसास लिये है
सावन...

झर झर झरना
है नयनन में,
मन है
चंचल हिरना,
बांध रहा
सावन हरियाला
शांत
रवि की किरना,
प्रेम का मौसम
ऐसा मौसम
क्या ठंडक क्या
तापन,
विरह मिलन
दोनों ही के,
एहसास लिये है
सावन...

धरती के
मुखड़े मलिन को
सावन जल ने
धोया,
वृथा हुए
प्रपंच जगत के
ना पाया
ना खोया,
उजला सा
अस्तित्व सामने
सब कुछ है
मनभावन,
विरह मिलन
दोनों ही के,
एहसास लिये है
सावन...

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