Wednesday, 30 July 2014

मैं दर्पण ...

मैं दर्पण ...

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मैं दर्पण
सहज समर्पण,
अति कृपण
ना अर्पण ना तर्पण,
आवरण
वातावरण
अवधारणा
अवतरण
सब तो हैं तुम्हारे....

मैं दर्पण
नितान्त निरपराध
प्रस्तुत जस का टस
ना कोई साध,
बिम्ब
प्रतिबिम्ब
दर्शन
चिंतन
सब तो हैं तुम्हारे...

मैं दर्पण
कलुष पीठ
उजले नयन
स्पष्ट दीठ,
कुंठित उसूल
जमी धूल
विश्लेषण
संश्लेषण
सब तो हैं तुम्हारे...

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