बादल जब मन हो तब बरसे...
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आतुर मन काहे को तरसे,
बादल जब मन हो तब बरसे,
एक खेत सूखा रह जाये
दूजा हरा भरा हो सरसे...
उत्तर नहीं बहुत प्रश्नों का
क्यों दूर जा रहा तू घर से,
जी ले पूरा जीवन हंस कर
रहे व्यथित क्यों वृथा डर से...
कर कर संग्रह उलझ रहा तू,
क्यों ना लुटा रहा तू कर से,
अपनों से तू तोड़ रहा है,
नेह लगा रहा क्यों पर से.
आतुर मन काहे को तरसे,
बादल जब मन हो तब बरसे,
एक खेत सूखा रह जाये
दूजा हरा भरा हो सरसे...
उत्तर नहीं बहुत प्रश्नों का
क्यों दूर जा रहा तू घर से,
जी ले पूरा जीवन हंस कर
रहे व्यथित क्यों वृथा डर से...
कर कर संग्रह उलझ रहा तू,
क्यों ना लुटा रहा तू कर से,
अपनों से तू तोड़ रहा है,
नेह लगा रहा क्यों पर से.
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