सर्वोपरि उपलब्द्धि ...
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कहाँ गए
वाद्य और संगीत
कहाँ गए
वो मधुर बोल,
थक सी गयी है
गीत की पांखें
मुंदने लगी है
थकी हारी आँखें,
रूठ से गए हैं
स्वप्न सुहाने,
घेरने लगे हैं
कोलाहल के बहाने,
चल उड़ चल
ओ वाणी के पक्षी
करले बसेरा
मौन के वन में,
होंगे तेरे संगी,
मौन की ध्वनि लिए
लहरहीन सरिता,
धरती को स्पर्श करता
निशब्द सवेरा,
शिशु तारे की अंगुली थामे
चाँद को ढूंढती
यह गूंगी सी
सुरमई संध्या
और
इन सब के बीच
वो अनकहा सत्य
जो है तुम्हारी
सर्वोपरि उपलब्द्धि ...........
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