Wednesday, 30 July 2014

कैसे ......?

कैसे ......?

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ह़र शै लगती
अजीब जैसे,
आ गया ऐ दिल
ये मक़ाम कैसे ?

जुबां चुप है
अल्फाज़ बोलते हैं
मुंह में फिर कसैला
जायका कैसे ?

खुशबू भरा है
गुलशन मेरा,
फूल कहीं दूर फिर
खिला कैसे ?

बहता है दरिया
मेरे ही घर से,
मेरा मन फिर भी
प्यासा कैसे ?

एक है या के
दो हैं हम,
अजनबी साया
दरमियां कैसे ?

जल रही शम्माएं
फानूस हैं रोशन
फिर भी मकाँ में मेरे
अँधेरा कैसे ?

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