'स्वस्थ प्रेम' (Healthy Love) और 'आसक्त उत्तेजन' (Addictive Excitement) : चिंतन को खुराक
==============================
हम सब बहुत ही इच्छुक होते हैं 'प्रेम' की खोज के लिए लेकिन 'आसक्त उत्तेजन की लत' छीन लेती है हम से 'खरे प्रेम' को. प्रेम केवल प्रेम होता है और उसे किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं. चूँकि भाषा की सीमाएँ हैं , 'स्वस्थ' विशेषण का अतिरिक्त प्रयोग बस स्पष्टता के लिए किया गया है. 'आसक्त उत्तेजन' के नज़दीकी हैं (पर्याय नहीं) सम्मोह और आसक्ति...जिन्हें भी इस से लगभग समझा जा सकता है.
कुछ दशकों पूर्व शोध के दौरान मेरा यह नोट अंग्रेज़ी में तैय्यार हुआ था. यह उसका हिंदी रूपांतरण है.
मैं कुछ बिंदु दोनों के अंतर के साझा कर रहा हूँ.
(१) हमारे द्वारा अपने सुरक्षित होने को महसूस कर पाने के बाद 'स्वस्थ प्रेम' उभरता है और विकसित होता है.
'आसक्त उत्तेजन' प्रयास करता है 'प्रेम' से मिलता जुलता कुछ सृजित करने का यद्यपि हम उसमें भय और असुरक्षा महसूस करते है.
(२) स्वस्थ प्रेम' आता है जब हम अपने को 'पूरा और तृप्त' महसूस करते है...जब हम प्रेम से लबरेज़ होते हैं.
'आसक्त उत्तेजन' एक प्रयास होता है भीतरी खोखलेपन को भरने के क्षणिक एहसास मात्र महसूस करने का.
(३) 'स्वस्थ प्रेम' की शुरुआत होती है 'स्वयं को प्रेम करने' से. 'आसक्त उत्तेजन' में हम खुद के प्रति प्यार से परे हो जाते हैं और प्यार किसी और 'स्पेसल' में खोजने लगते हैं जिसकी स्पेसीयलिटी अपनी ही मानसिक कल्पना में देखते रहते हैं यथार्थ को दर किनार रख कर.
(४) 'स्वस्थ प्रेम' जब घटित होता है हमारी कथित 'प्रेम तलाश' पूरी हो जाती है
'आसक्त उत्तेजन' में हम हर दम प्रेम प्रेम जपते उसी 'आसक्त उत्तेजन' को ढूँढने में लगे रहते हैं.
(५) 'स्वस्थ प्रेम' धीमी गति से विकसित होता है एक पेड़ की तरह. 'आसक्त उत्तेजन' तीव्र गति से बढ़ता है एक जादू की तरह.
(६) 'स्वस्थ प्रेम' हमें संवेदनशील होने देता है क्योंकि हम भीतर से सुरक्षित महसूस करते हैं....इसकी नींव मज़बूत और स्थिर होती है.
'आसक्त उत्तेजन' की नींव कमज़ोर और डाँवाडोल होती है...हमें हर समय लगता है कि हम सम्बंध को बचाने और बनाए रखने के लिए सुरक्षा उपाय करें.
(७) 'स्वस्थ प्रेम' पार्टनर के साथ भी और अकेले में भी खिलता रहता है.
'आसक्त उत्तेजन' को भय रहता है अकेले रहने में...उत्कंठा रहती है हर समय सामने/साथ हो पार्टनर.
(८) 'स्वस्थ प्रेम' का उद्गम प्रत्येक पार्टनर में निहित पुरुष और स्त्री गुणों के संतुलन से होता है.
'आसक्त उत्तेजन' में 'सुपर पुरुष गुण' या 'सुपर स्त्री गुण' की परिकल्पनाओं का आयोजन होता है और एक दूसरे में उस मिस्सिंग आधे को खोजने का उपक्रम होता है.
(९) 'स्वस्थ प्रेम' हमें प्रोत्साहित करता है यह महसूस करने के लिए कि हम खुद अपनी दुनिया सृजित कर सकते हैं और खुश हो सकते हैं.
'आसक्त उत्तेजन' में हम किसी का हमारे ऊपर आधिपत्य देखने लगते हैं. हम ऐसा पार्टनर तलाशने में लगे होते हैं जो अपनी ऊर्जा हमें देकर हमें पूरा कर दे.
बहुत झीनी बात : मामला इरादे और उसको लागू करने का है. सहभागिता-सहयोग लाज़िमी : स्वस्थ प्रेम
बौझा बन जाना या बना लेना : आसक्त उत्तेजन.
(१०) 'स्वस्थ प्रेम' शालीन और सुखद.
'आसक्त उत्तेजन' तनावपूर्ण और लड़ाकू.
(११) 'स्वस्थ प्रेम' हमें हमारे स्वयं होने के लिए प्रोत्साहित करता है......शुरुआत से ही "हम कौन हैं ?" के नज़रिए को ईमानदारी से खोजकर अपनी कमियों के प्रति भी स्पष्ट और स्वीकार को तत्पर.
'आसक्त उत्तेजन' तरह तरह की गोपनीयता और दोहरेपन को प्रोत्साहित करता है. हम इसमें हरदम अच्छे दिखने की कोशिश करते हैं और आकर्षक मुखौटा भी लगा लेते हैं.
(१२) 'स्वस्थ प्रेम' में हमारे 'स्व सारतत्व' के गहरे आभास की सुध (चेतना/होशमंदी) लगातार सृजित होती है जितना लम्बा हम पात्रों का साथ होता है.
'आसक्त उत्तेजन' में 'स्व सारतत्व' की सुध खोने लगती है जितना लम्बा पात्रों का साथ चलता है.
(यहाँ स्व से अर्थ हमारी रूह और आन्तरिक मौलिकता से है. पार्टनर्स एक सा होना तय कर सकते हैं खुद के लिए/सहज एक जैसे हो जाते है ख़ुशी और आज़ादी के साथ, ना कि किसी भी भावनात्मक दवाब के तहत)
(१३) 'स्वस्थ प्रेम' समय गुज़रने के साथ अधिकाधिक सहज और आसान होता जाता है.
'आसक्त उत्तेजन' में समय गुज़रने के साथ अधिकाधिक प्रयास रिश्ते में रहने हेतु करना ज़रूरी हो जाता हैं. रोमांटिक छवि को बनाये रखना अति कठिन हो जाता है.
(१४) 'स्वस्थ प्रेम' अधिकाधिक विकसित होता जाता है जैसे जैसे भय के एहसास कम होते रहते है.
'आसक्त उत्तेजन' फैलता है (गहराई और प्रगाढ़ता कम होने से आशय) जैसे जैसे भय के एहसास बढ़ते जाते हैं.
(१५) 'स्वस्थ प्रेम' संतुष्ट होता है अपने पार्टनर के 'यथारुप' साथ होने से....गुणवत्ता में विकास प्रेम में नैसर्गिक चाहे सप्रयास हो या निष्प्रयास.
'आसक्त उत्तेजन' हमेशा 'और ज़्यादा बेहतर' के लिए बस देखता रहता है एक तृष्णा के रूप में....नतीजा असंतोष और कूँद फाँद.
(१६) 'स्वस्थ प्रेम' हमारी सुरुचियों को और बढ़ाने में प्रोत्साहित करता है.
'आसक्त उत्तेजन' हमारी सुरुचियाँ कम करने को मजबूर करता है.
(१७) 'स्वस्थ प्रेम' इस भरोसे पर आधारित है : हम साथ रहना 'चाहते' हैं.(स्वतंत्र इच्छा)
'आसक्त उत्तेजन' इस सोच पर आधारित है : हमें साथ रहना ही चाहिए.(compromise/adjustment/mazboori)
(१८) 'स्वस्थ प्रेम' हमें सीखाता है कि हमारी ख़ुशी के कर्ता हम ही हो सकते हैं.
'आसक्त उत्तेजन' हमें सीखाता है कि दूसरे हमें खुश करेंगे और यह माँग भी करता है कि हमें भी दूसरों को खुश करने का प्रयास करना होगा.
(१९) 'स्वस्थ प्रेम' जीवन में जीवन्त्तता का सृजन करता है.
'आसक्त उत्तेजन' भावुकता भरी नौटंकी का मंचन कराता है.
(२०) 'स्वस्थ प्रेम' सम्पूर्ण होता है.....यह खुद के बूते पर चल सकता है..पार्टनर्स का आपसी सहयोग 'गहरे प्रगाढ़ साथ' को हासिल करता है.
'आसक्त उत्तेजन' भंगित और अपाहिज होता है...ऐसा साथ बस बैसाखियों का काम करता है और एक बदसूरत निर्भरता की तरफ़ अग्रसर रहता है.
होशमंदी (Awareness), स्पष्टता (Clarity) और स्वीकार्यता (Acceptance) के मंत्र को अपना कर और आपसी समझ का सृजन कर, 'आसक्त उत्तेजन' की तरक़्क़ी 'स्वस्थ प्रेम' के स्तर तक की जा सकती है....सर्वथा सम्भव है यह किंतु देखा गया है कि कई बहाने, असुरक्षा भाव, पूर्वाग्रह और मिथ आड़े आ जाते हैं.
स्वातिजी (Swati Bajpai) एक मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक है उनके विचार इस पोस्ट पर comments में हैं जिन्हें मैं इस नोट का उपसंहार बना रहा हूँ उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हुआ :
"शुरुआत में लोग जिसे प्रेम कह देते हैं वह 'आकर्षण' होता है हार्मोंस, फेरोमोंस और केमिस्ट्री आधारित.
प्रेम एक रहस्य है......किंतु आपसी सम्मान, परवाह, और आकर्षण की स्वस्थ 'डोज़' मिल कर प्रेम कहे जा सकते हैं."
==============================
हम सब बहुत ही इच्छुक होते हैं 'प्रेम' की खोज के लिए लेकिन 'आसक्त उत्तेजन की लत' छीन लेती है हम से 'खरे प्रेम' को. प्रेम केवल प्रेम होता है और उसे किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं. चूँकि भाषा की सीमाएँ हैं , 'स्वस्थ' विशेषण का अतिरिक्त प्रयोग बस स्पष्टता के लिए किया गया है. 'आसक्त उत्तेजन' के नज़दीकी हैं (पर्याय नहीं) सम्मोह और आसक्ति...जिन्हें भी इस से लगभग समझा जा सकता है.
कुछ दशकों पूर्व शोध के दौरान मेरा यह नोट अंग्रेज़ी में तैय्यार हुआ था. यह उसका हिंदी रूपांतरण है.
मैं कुछ बिंदु दोनों के अंतर के साझा कर रहा हूँ.
(१) हमारे द्वारा अपने सुरक्षित होने को महसूस कर पाने के बाद 'स्वस्थ प्रेम' उभरता है और विकसित होता है.
'आसक्त उत्तेजन' प्रयास करता है 'प्रेम' से मिलता जुलता कुछ सृजित करने का यद्यपि हम उसमें भय और असुरक्षा महसूस करते है.
(२) स्वस्थ प्रेम' आता है जब हम अपने को 'पूरा और तृप्त' महसूस करते है...जब हम प्रेम से लबरेज़ होते हैं.
'आसक्त उत्तेजन' एक प्रयास होता है भीतरी खोखलेपन को भरने के क्षणिक एहसास मात्र महसूस करने का.
(३) 'स्वस्थ प्रेम' की शुरुआत होती है 'स्वयं को प्रेम करने' से. 'आसक्त उत्तेजन' में हम खुद के प्रति प्यार से परे हो जाते हैं और प्यार किसी और 'स्पेसल' में खोजने लगते हैं जिसकी स्पेसीयलिटी अपनी ही मानसिक कल्पना में देखते रहते हैं यथार्थ को दर किनार रख कर.
(४) 'स्वस्थ प्रेम' जब घटित होता है हमारी कथित 'प्रेम तलाश' पूरी हो जाती है
'आसक्त उत्तेजन' में हम हर दम प्रेम प्रेम जपते उसी 'आसक्त उत्तेजन' को ढूँढने में लगे रहते हैं.
(५) 'स्वस्थ प्रेम' धीमी गति से विकसित होता है एक पेड़ की तरह. 'आसक्त उत्तेजन' तीव्र गति से बढ़ता है एक जादू की तरह.
(६) 'स्वस्थ प्रेम' हमें संवेदनशील होने देता है क्योंकि हम भीतर से सुरक्षित महसूस करते हैं....इसकी नींव मज़बूत और स्थिर होती है.
'आसक्त उत्तेजन' की नींव कमज़ोर और डाँवाडोल होती है...हमें हर समय लगता है कि हम सम्बंध को बचाने और बनाए रखने के लिए सुरक्षा उपाय करें.
(७) 'स्वस्थ प्रेम' पार्टनर के साथ भी और अकेले में भी खिलता रहता है.
'आसक्त उत्तेजन' को भय रहता है अकेले रहने में...उत्कंठा रहती है हर समय सामने/साथ हो पार्टनर.
(८) 'स्वस्थ प्रेम' का उद्गम प्रत्येक पार्टनर में निहित पुरुष और स्त्री गुणों के संतुलन से होता है.
'आसक्त उत्तेजन' में 'सुपर पुरुष गुण' या 'सुपर स्त्री गुण' की परिकल्पनाओं का आयोजन होता है और एक दूसरे में उस मिस्सिंग आधे को खोजने का उपक्रम होता है.
(९) 'स्वस्थ प्रेम' हमें प्रोत्साहित करता है यह महसूस करने के लिए कि हम खुद अपनी दुनिया सृजित कर सकते हैं और खुश हो सकते हैं.
'आसक्त उत्तेजन' में हम किसी का हमारे ऊपर आधिपत्य देखने लगते हैं. हम ऐसा पार्टनर तलाशने में लगे होते हैं जो अपनी ऊर्जा हमें देकर हमें पूरा कर दे.
बहुत झीनी बात : मामला इरादे और उसको लागू करने का है. सहभागिता-सहयोग लाज़िमी : स्वस्थ प्रेम
बौझा बन जाना या बना लेना : आसक्त उत्तेजन.
(१०) 'स्वस्थ प्रेम' शालीन और सुखद.
'आसक्त उत्तेजन' तनावपूर्ण और लड़ाकू.
(११) 'स्वस्थ प्रेम' हमें हमारे स्वयं होने के लिए प्रोत्साहित करता है......शुरुआत से ही "हम कौन हैं ?" के नज़रिए को ईमानदारी से खोजकर अपनी कमियों के प्रति भी स्पष्ट और स्वीकार को तत्पर.
'आसक्त उत्तेजन' तरह तरह की गोपनीयता और दोहरेपन को प्रोत्साहित करता है. हम इसमें हरदम अच्छे दिखने की कोशिश करते हैं और आकर्षक मुखौटा भी लगा लेते हैं.
(१२) 'स्वस्थ प्रेम' में हमारे 'स्व सारतत्व' के गहरे आभास की सुध (चेतना/होशमंदी) लगातार सृजित होती है जितना लम्बा हम पात्रों का साथ होता है.
'आसक्त उत्तेजन' में 'स्व सारतत्व' की सुध खोने लगती है जितना लम्बा पात्रों का साथ चलता है.
(यहाँ स्व से अर्थ हमारी रूह और आन्तरिक मौलिकता से है. पार्टनर्स एक सा होना तय कर सकते हैं खुद के लिए/सहज एक जैसे हो जाते है ख़ुशी और आज़ादी के साथ, ना कि किसी भी भावनात्मक दवाब के तहत)
(१३) 'स्वस्थ प्रेम' समय गुज़रने के साथ अधिकाधिक सहज और आसान होता जाता है.
'आसक्त उत्तेजन' में समय गुज़रने के साथ अधिकाधिक प्रयास रिश्ते में रहने हेतु करना ज़रूरी हो जाता हैं. रोमांटिक छवि को बनाये रखना अति कठिन हो जाता है.
(१४) 'स्वस्थ प्रेम' अधिकाधिक विकसित होता जाता है जैसे जैसे भय के एहसास कम होते रहते है.
'आसक्त उत्तेजन' फैलता है (गहराई और प्रगाढ़ता कम होने से आशय) जैसे जैसे भय के एहसास बढ़ते जाते हैं.
(१५) 'स्वस्थ प्रेम' संतुष्ट होता है अपने पार्टनर के 'यथारुप' साथ होने से....गुणवत्ता में विकास प्रेम में नैसर्गिक चाहे सप्रयास हो या निष्प्रयास.
'आसक्त उत्तेजन' हमेशा 'और ज़्यादा बेहतर' के लिए बस देखता रहता है एक तृष्णा के रूप में....नतीजा असंतोष और कूँद फाँद.
(१६) 'स्वस्थ प्रेम' हमारी सुरुचियों को और बढ़ाने में प्रोत्साहित करता है.
'आसक्त उत्तेजन' हमारी सुरुचियाँ कम करने को मजबूर करता है.
(१७) 'स्वस्थ प्रेम' इस भरोसे पर आधारित है : हम साथ रहना 'चाहते' हैं.(स्वतंत्र इच्छा)
'आसक्त उत्तेजन' इस सोच पर आधारित है : हमें साथ रहना ही चाहिए.(compromise/adjustment/mazboori)
(१८) 'स्वस्थ प्रेम' हमें सीखाता है कि हमारी ख़ुशी के कर्ता हम ही हो सकते हैं.
'आसक्त उत्तेजन' हमें सीखाता है कि दूसरे हमें खुश करेंगे और यह माँग भी करता है कि हमें भी दूसरों को खुश करने का प्रयास करना होगा.
(१९) 'स्वस्थ प्रेम' जीवन में जीवन्त्तता का सृजन करता है.
'आसक्त उत्तेजन' भावुकता भरी नौटंकी का मंचन कराता है.
(२०) 'स्वस्थ प्रेम' सम्पूर्ण होता है.....यह खुद के बूते पर चल सकता है..पार्टनर्स का आपसी सहयोग 'गहरे प्रगाढ़ साथ' को हासिल करता है.
'आसक्त उत्तेजन' भंगित और अपाहिज होता है...ऐसा साथ बस बैसाखियों का काम करता है और एक बदसूरत निर्भरता की तरफ़ अग्रसर रहता है.
होशमंदी (Awareness), स्पष्टता (Clarity) और स्वीकार्यता (Acceptance) के मंत्र को अपना कर और आपसी समझ का सृजन कर, 'आसक्त उत्तेजन' की तरक़्क़ी 'स्वस्थ प्रेम' के स्तर तक की जा सकती है....सर्वथा सम्भव है यह किंतु देखा गया है कि कई बहाने, असुरक्षा भाव, पूर्वाग्रह और मिथ आड़े आ जाते हैं.
स्वातिजी (Swati Bajpai) एक मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक है उनके विचार इस पोस्ट पर comments में हैं जिन्हें मैं इस नोट का उपसंहार बना रहा हूँ उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हुआ :
"शुरुआत में लोग जिसे प्रेम कह देते हैं वह 'आकर्षण' होता है हार्मोंस, फेरोमोंस और केमिस्ट्री आधारित.
प्रेम एक रहस्य है......किंतु आपसी सम्मान, परवाह, और आकर्षण की स्वस्थ 'डोज़' मिल कर प्रेम कहे जा सकते हैं."