स्वांत: सुखाय
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कुछ अबूझ प्रश्न.....
++++++++
(पिछले सप्ताह आसाराम के वक़ील साहब ९४ की उम्र में इस दुनियाँ से कूच कर गए. असाधारण प्रतिभा के स्वामी थे वक़ील साहब...बहुत कुछ पढ़ा उनके बारे में....जाने वाले की प्रशंसा सफल व्यक्ति के लिए सभी सीमाएँ तोड़ देती है ऐसा लगा...कुछ अबूझ प्रश्न है मेरे...)
****************
कुछ तो विशिष्ठ था उन में
जो कर पाए थे हासिल
इतनी बड़ी ऊँचाईयां
क्या था ऐसा ?
पढ़े गए हैं क़सीदे
संघर्षशीलता
सुस्पष्टता
कर्मठता
पेशे के प्रति समर्पण के
किंतु कितने ही
विरोधाभास और असंगतियाँ ?
कभी इस दल को नवाज़ा
कभी उस दल का पल्ला पकड़ा
एक ही तरह के दो इंसान
एक के लिए पसंदगी
दूजा नापसंद
कैसी थी स्पष्टता ?
देश से अगाध प्रेम का दावा
दलीलें बचाने के लिए
देशद्रोहियों और देश के दुश्मनों को
कहाँ थी सीमा रेखा ?
सार्वजनिक जीवन में
प्रामाणिकता की पक्षधरता
विधान के प्रति आस्था का दावा
प्रतिनिधित्व प्रकट भ्रष्टाचारियों
विधान प्रवंचकों का
कैसी थी यह आस्था ?
कहने को कह दिया
दोनों बाख़ुशी साथ थी
प्रश्न किंतु अनुत्तरित
क्या थी वास्तविक अपर्याप्तता जो
करना पड़ा था गोपन विवाह
सहकारी के संग ?
प्यार हुआ था किसी से
सम्बंध बन जाते थे
हर सहमति दात्री से
बदलते साथी कार्यक्रम चलता रहा
कैसी थी प्रतिबद्धता ?
कामयाबी
जीवन के किसी हिस्से की
नहीं बना देती फ़िलोसोफ़ी
पूरे जीवन की,
नहीं इनकार ख़ासियतों से
मगर ढकना ढांपना कमियों को
सफलता के लाबादे में ये कैसा ?
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कुछ अबूझ प्रश्न.....
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(पिछले सप्ताह आसाराम के वक़ील साहब ९४ की उम्र में इस दुनियाँ से कूच कर गए. असाधारण प्रतिभा के स्वामी थे वक़ील साहब...बहुत कुछ पढ़ा उनके बारे में....जाने वाले की प्रशंसा सफल व्यक्ति के लिए सभी सीमाएँ तोड़ देती है ऐसा लगा...कुछ अबूझ प्रश्न है मेरे...)
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कुछ तो विशिष्ठ था उन में
जो कर पाए थे हासिल
इतनी बड़ी ऊँचाईयां
क्या था ऐसा ?
पढ़े गए हैं क़सीदे
संघर्षशीलता
सुस्पष्टता
कर्मठता
पेशे के प्रति समर्पण के
किंतु कितने ही
विरोधाभास और असंगतियाँ ?
कभी इस दल को नवाज़ा
कभी उस दल का पल्ला पकड़ा
एक ही तरह के दो इंसान
एक के लिए पसंदगी
दूजा नापसंद
कैसी थी स्पष्टता ?
देश से अगाध प्रेम का दावा
दलीलें बचाने के लिए
देशद्रोहियों और देश के दुश्मनों को
कहाँ थी सीमा रेखा ?
सार्वजनिक जीवन में
प्रामाणिकता की पक्षधरता
विधान के प्रति आस्था का दावा
प्रतिनिधित्व प्रकट भ्रष्टाचारियों
विधान प्रवंचकों का
कैसी थी यह आस्था ?
कहने को कह दिया
दोनों बाख़ुशी साथ थी
प्रश्न किंतु अनुत्तरित
क्या थी वास्तविक अपर्याप्तता जो
करना पड़ा था गोपन विवाह
सहकारी के संग ?
प्यार हुआ था किसी से
सम्बंध बन जाते थे
हर सहमति दात्री से
बदलते साथी कार्यक्रम चलता रहा
कैसी थी प्रतिबद्धता ?
कामयाबी
जीवन के किसी हिस्से की
नहीं बना देती फ़िलोसोफ़ी
पूरे जीवन की,
नहीं इनकार ख़ासियतों से
मगर ढकना ढांपना कमियों को
सफलता के लाबादे में ये कैसा ?
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