ख़त का कोई जवाब अब नहीं आता,,,
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खुली आँखों में ख़्वाब अब नहीं आता
मेरे ख़त का कोई जवाब अब नहीं आता,,,
चाहत की राहत गुज़र गई ऐसे
मेरे दीदार का इज़्तिराब अब नहीं आता,,,
बातें मोहब्बत की बेमानी हुई अब तो
रात की तीरगी में महताब अब नहीं आता,,,
भूल चुका वो अहद किये सारे यारब
बेगैरत चेहरे पे हिजाब अब नहीं आता,,,
मायने अशआर के मुख़्तलिफ़ हुए देखो
लबे साक़ी पे जामे शराब अब नहीं आता,,,
(दीदार=दर्शन, इज़्तिराब=व्याकुलता/बेचैनी, तीरगी =अँधेरा, महताब=चंद्रमा, आहद-वादा, बेग़ैरत=लाज रहित, हिजाब=पर्दा, आशआर=शेर-couplets का बहु वचन, मुख़्तलिफ़-उलट, साक़ी=सुरा बाला)
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