'लोंग रोप'.....
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विभ्रम था मेरा
सुन कर
'जी' 'हाँ' जी हाँ' 'हाँ जी' 'जी अच्छा' आदि
शब्द हुंकारे के
बहक जाते थे होकर
फूल कर कुप्पा😅...
कितने छलावे
कितने दिखावे
बन गए थे
महज़ 'केस स्टडीज़' तुम्हारी
खोलने परतें मानव मनोविज्ञान की
जीने हेतु तुम्हारे जीवन दर्शन को...
जब जाना पैनी नज़रें
अंतरदृष्टि
और पीने पचाने की
क्षमता तुम्हारी
रह गयी थी आवाक मैं
मुश्किल था सह पाना
कितने रहस्य समाए बैठे हो
तुम खुद में...
अस्तित्व के पास भी होगा
तुम सा 'लोंग रोप'
जो देते रहते हो हंसते हाँसाते
उन लोगों को
जो कभी कुटिलता
कभी मजबूरी
कभी आदतन
आघात पहुँचाते रहते हैं तुम को....
माँग लूँ कई और जनम
तुम्हें पूरा जानने के लिए
तुम छलिये बहुरूपी
ना जाने कितने रूपों में समाये
जीये जा रहे हो संग मेरे
उसी मासूमियत से
क़ायम है जो
अपने बालपन से...
(यह भी एक केस स्टडी है😀😀)
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