Tuesday, 16 July 2019

ये दर्द मेरा लज़्ज़ते अरमान हो गया,,,,,



ये दर्द मेरा लज़्ज़ते अरमान हो गया,,,,
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अपना ही अक्स आईने में अनजान हो गया
खुद के ही घर में यारों मैं मेहमान हो गया,,,

ज़ख़्म दे रहा है राहत ख़ुशनुमा यादों की
ये दर्द मेरा लज्जते अरमान हो गया,,,

कहते थे मेरे अज़ीज़, जुदा यक शख़्स हूँ मैं
मेरा आम होना ही आज मेरी पहचान हो गया,,,

सीख लिया है सलीक़ा जज़्बात छुपा लेने का
दिले सदचाक मेरा दिले शादमान हो गया,,,

कहते रहे ग़ज़ल ख़ुद ही की वुसअत में
सफ़े रंजो ख़ुशी के जुड़े ,दीवान हो गया,,,,

(लज्जत=सुखद अनुभव, दिले सदचाक=भग्न हृदय, दिले शादमान=प्रसन्न हृदय,वुसअत=विस्तार, सफ़ा=पृष्ठ/पन्ना, रंज=दुःख, दीवान=ग़ज़लों का संग्रह)

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