विदाई,,,,
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कहाँ हो पाता है
विदा पूरी तरह कोई
सत्य है या भ्रम
एक असमंजस ही तो है
विदाई,,,
शाश्वत सत्य है
मिलना,बिछुड़ना फिर मिलना
जन्म जन्मांतर के सम्बन्धों का
अपरिहार्य प्रतीक है
विदाई,,,
जन्म के दौरान
और
मृत्यु से ठीक पूर्व
जुड़ाव का होकर सह प्रतिपक्ष
हो जाती है घटित
विदाई,,,
होने लगे प्रेम जहां
परिभाषित और विभाजित
दोनों दिखते किनारों से परे
होती है एक अदेखा किनारा
विदाई,,,
सबब है यह भक्ति का
खोले हो कर तिरोहित
द्वार परम मुक्ति का
मिलन का ही रूप है एक
विदाई,,,
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