कोंपल दर्द की....
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नहीं भरता है वक़्त
घावों को,
ढाँप देता है बस उन्हें
एक लम्बी सी चादर से
देने को भुलावा
चोट के बिसर जाने का,
हो जाता है भ्रम
उस पीड़ा को भूल जाने का
गाड़ दिया गया होता है जिसे
किसी समझौते के तहत
बहुत गहरे में,
देख लो ना मगर
फूट आयी है आज
यह कोंपल दर्द की....
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