साझी ग़ज़ल
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सीखने होंगे सलीक़े होश ओ जोश जीने के
गाफ़िल को जीने की अभी सौग़ात बाक़ी है.
कसर छोड़ी नहीं तुम ने मुझे यूँ आज़माने में
सितम होते गये बरपा मगर जज़्बात बाक़ी है.
होगी सहर तो हो जाएंगे ख़ुद ब ख़ुद रुख़सत
बरसने दें ख़यालों को अभी तक रात बाकी है.
चल दिए तुम छोड़ कर बाज़ी अधूरी को
शतरंज सी ज़िंदगी में शह ओ मात बाक़ी है.
भगा दिया क्यों पीट कर ग़ुस्ताख़ बंदे को
बेशर्म तो कहता गया कि लात बाक़ी है.
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नोट :
1. पहला और आख़री शेर साहेब याने विनोद जी का, तीसरा मुदिताजी का..दूसरा और चौथा मेरा. ये शेर प्रीति की ग़ज़ल पर
कमेंट्स के दौरान emerge हुए हैं.😊.
2. थोड़े बहुत changes मैंने, साहेब की मदद से साधिकार कर दिए हैं.😊😊.
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