Monday, 10 June 2019

वहम ज्ञान का,,,,,



वहम ज्ञान का,,,,,
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होता है वहम
जानने का
जितना अधिक
जानते हैं सचमुच
हम उतना ही कम,,,,,

होते हैं हम
जब भी गर्ववंत
हमारी शानदार शोधों के लिए
आधारित हमारे एकांगी ज्ञान पर,
आन खड़ी होती है तुरंत
हमारी अनभिज्ञता
कहते हुए :
क्षमा करना मेरे मित्र !
अभी तो चलना है तुम्हें बहुत दूर
अलग है यह
कर देते हैं हम
अनदेखा उसको,,,,

करते जाते हैं
निरूपण
किसी भी व्यक्ति,घटना या परिस्थिति का
अपनी सीमित दृष्टि और बोध से,
नहीं कर पाते हम आकलन
उन अनगिनत पहलूओं का जो
होते हैं प्रछन्न हमारे
अज्ञान के पर्दे में,,,,

होती है ज्ञान की यह अपर्याप्तता
ना केवल बहिरंग के लिए
हुआ करती है अवश्य
हमारी यह कमी
अंतरंग के लिए भी,
पकड़ लेते हैं ना जाने क्यों हम
बस किसी एक ही तथ्य को
छोड़ कर दूसरे तीसरे, चौथे को,
सच तो यह है
सजगता, स्पष्टता व समग्रता का अभाव
भरमा देता है हमें
उलझा कर एकांगी भेदों में
भटक जाते हैं हम राह
बाहर कहीं पहुँचने की
अंदर कहीं लौट आने की,,,,

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