बहु आयामी,,,,
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बहुआयामी है ना कृष्ण !
बता तो दे कोई मुझे
मानव ऐसा
जो नहीं पड़ेगा कृष्ण प्रेम में,
होते ही तनिक सा भी
एहसास प्रेम का
खोज लेगा वह
कुछ ना कुछ प्रेम योग्य
माधव के व्यक्तित्व में
वृहत गहन कृतृत्व में,
कर सकता है साधु भी प्रेम उससे
असाधु भी
संसार से भागा विरागी भी
महारास नृत्य का रसिक अनुरागी भी
अपना कर निस्पृहता स्व अंतर में,
वाद्यवृंद है कृष्ण मुरलीधर
बज रही है जहाँ
प्रत्येक वाद्य से धुनें अपनी अपनी
जो जिसको भाये वही वाद्य हो जाये
प्रेमपात्र उस विशेष प्रेमी का,
होता है एकांगी
गुण विशेष को चुन कर
किया गया प्रेम,
प्रेमेगा समग्र संपूर्ण कृष्ण को
कोई बहुआयामी मानव या मानवी ही
जो हो वैसा ही
जैसा अच्युत छलिया मधुसूदन !
वद्यवृंद =ओरकेस्ट्रा
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