Sunday, 30 September 2018

गुरु और उसकी चेलियाँ : विजया



गुरु और उसकी चेलियाँ
++++++++++++++

आजकल के गुरु 'गुरु घंटाल' होते हैं.चेले-चलियाँ तो गुरूजी के भी गुरु.

यह एक ऐसे गुरु की कहानी है जिसके बहुत से चेले चेलियाँ थी मगर दो चेलियाँ खासम-खास : उत्तरा और दक्षिणा.☺

 जब नाना प्रकार के पाखण्ड कर्म जैसे इधर उधर से मारे हुए उपदेश देना, रुपये पैसों के मैटर, चेलियों का संसर्ग के लिए चुनाव, विद्रोहियों को सीधा करना, राज नेताओं को उनके मकसद के लिए मदद करना और किसी सेठ के साथ डील फिक्स करना, होंठ हिला कर प्ले बेक में भजन गान करना, फेन्सी ड्रेस और भौंडे डांस करना, असाध्य बीमारियों के लिए झाड़ फूंक आदि, से थक कर गुरु घंटाल चूर हो जाता तो ये दोनों चेलियाँ गुरूजी के पाँव दबाती और स्पर्श सुख देती थी.दोनों ने पांवों का बंटवारा किया हुआ था उत्तरा का बांया और दक्षिणा का दांया.दोनों चेलिया विदेशी तेल से मालिश करती थी और गुरु फ़िदा था.

एक दिन की बात. परमात्मा की मर्ज़ी. सीधे सोते सोते गुरु ने अचानक करवट बदली और उसकी दांयी टांग बांयी टांग पर चढ़ गयी. यह देख दक्षिणा मुस्कुरा दी और उत्तरा के कलेजे में मानो खंजर चुभ गयी. उसकी गैरत ने जोश पकड़ा और उठाकर एक डंडा दांयी टांग पर मार दिया......गुरु बिलबिला उठा.......जैसे ही उसने बांयी टांग बाहर निकाली दक्षिणा ने उठाकर पास पड़े भंग घोटने के सिल बट्टे को जोर से मार दिया बांयी टांग पर. गुरु घंटाल की दोनों टांगों की शामत आ गयी.

सुना है आजकल गुरु की दोनों टांगों पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है और चेलों के दो गुट बन गए हैं जो खुद को साबित करने के चक्कर में आपस में लड़ रहे हैं....अंध भक्त जो ठहरे.

कबीर काकासा कह गए : गुरु कुम्हार तो चेला कुम्भ. गुरु तो वह कुशल कुम्हार है जो ऊपर से चोट मरता है याने थपकी देता है पर भीतर से सहारा देता है.....जैसा घड़ा बनाने में होता है. पर आज ना तो सच्चे गुरु बचें है और ना ही सच्चे चेले☺.

No comments:

Post a Comment