Sunday, 30 September 2018

मृत्यु कुछ भी नहीं,,,,,,,,

स्वांत: सुखाय
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मृत्यु को सोचते हुये भी जीवन पर ही लिखा जाता रहा मुझ से. प्रीति और सौम्या की कविताएँ पढ़ी(comments में reproduce की है रेडी रेफरेंस के लिए), दिल किया इस बार सीधा मृत्यु पर ही लिख दूँ....कुछ पंक्तियाँ हुई भी किंतु भारी भरकम दर्शन लिये....सब दर्शनशास्त्री तो नहीं जो मौत के फ़लसफ़े में गोते लगाए....कुछ ऐसा आसान हो जो सौम्या की कविता की पीड़ा से प्रीति की कविता की रिम झिम तक ले जाए,,,,बक़ौल सौम्या झमाझम वर्षा हो जाए. ऐसे में सोचा Henry Scott-Holland (हेनरी स्कॉट) की प्रसिद्ध कविता "Death is Nothing At All" का एक सहज सा भावानुवाद क्यों ना किया जाय. थोड़ा सा रूपांतरण भी किया है याने मेरे हस्ताक्षर.

Share कर रहा हूँ अपनी कोशिश. बताइएगा 'दर्द से सुकून' का सफ़र करा पा रही है या नहीं यह कोशिश...

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मृत्यु कुछ भी तो नहीं......

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मृत्यु कुछ भी तो नहीं
बस अंत है एक देह का
एक लिबास का उतरना
और दूसरे को पहन लेना....

मैं तो जा रहा हूँ
एक दूर के सफ़र पर
ओझल हो रहा हूँ आँख से तो क्या
हूँ तो मैं पास ही तुम्हारे,
कुछ भी तो नहीं हुआ...

वैसा ही तो है सब कुछ
तुम भी वैसे
मैं भी वैसा
सब कुछ तो है वैसा का वैसा,
देखो ना वैसी की वैसी ही तो है
हम ने संग संग बितायी थी जो घड़ियाँ,
अनछुई
बिना बदली,
वही तो हो
तुम थे जो मेरे लिए,
और मैं भी तो वही हूँ
तुम्हारे लिए....

पुकारो ना मुझ को
उसी छोटे से नाम से,
बोलो ना मुझ से
उसी आसानी से
बोला करते थे जैसे तुम मुझ से,
क्यों अपना रहे हो
यह लहजा अलग सा,
मत ओढ़ाओ ना अपने स्वर को
ज़बरदस्ती की हवा
गम्भीरता
और दुःख....

लगाओ ना कहकहे
उसी तरह
जैसे हम छोटे छोटे चुटकुलों की मस्ती में
हँसते हँसते लगाया करते थे,
खेलो !
मुस्कुराओ !
सोचो ना मेरे बारे में
कर लो ना प्रार्थना भी मेरे लिए,,

देखना बना रहे मेरा नाम
वैसा ही रोज़मर्रा का लफ़्ज़
जो बोला जाता है
बिना किसी प्रयास के
बिना किसी काल्पनिक प्रेतछाया के....

देखो इस पल भी
वही तो अर्थ है जीवन का
जो हुआ करता है सदा,
वही तो है जीवन
हमेशा जैसा ही,
वही सम्पूर्ण और अटूट निरंतरता तो है इसकी...
क्या है देहांत ?
बस एक नगण्य सी आकस्मिक घटना...

क्यों हो जाऊँ मैं
तुम सब के मनोमस्तिष्क से बाहर ?
सिर्फ़ इसीलिए ना
कि हो गया हूँ नज़रों से दूर,
इंतज़ार में हूँ मैं तो
एकदम नज़दीक
बिलकुल आसपास
लेकर एक छोटा सा अंतराल....

सब कुछ ठीक तो है
कुछ भी तो चोट नहीं लगी
खोया भी तो कुछ नहीं
ज़रा सोचो
कितना हँसेंगे हम इस छद्म जुदाई पर
जब मिलेंगे हम फिर से
होकर आमने सामने
अगली बार....

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