Sunday, 30 September 2018

संवेदन : विजया


संवेदन....
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नहीं वंचित हैं द्वन्द
विष पर
उसे तो कब का
पी गयी हूँ मैं,
हाय रे यह संवेदन
लोगों का
व्यथित है वे कि क्यों
जी गयी हूँ मैं,
कहूँ अब कैसे
वृतांत
अंतर्मन का,
ना जाने क्यों और कैसे
अपने अधरों को
सी गयी हूँ मैं....

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