Sunday, 30 September 2018

कुछ अनकही बातें : विजया



कुछ अनकही बातें.....
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जिस धज से जीयी हूं उस धज से ही मैं जाऊं
सज धज के ही रही हूं सजघज के चली जाऊं...

करे याद मुझ को वो ही जिस ने है दिल लगाया
मरहम बनी मैं उसकी जिसने था दिल दुखाया...

नेकी और बदी की वो बड़ी बड़ी सी बातें
अपने समझ ना आई वो सब किताबी बातें...

तुम को देखा जाना और तुझ में ही सब पाया
काम से राम तक का हर सबक तुम ने सिखाया...

वो नन्हे हाथों की छुअन वो जवानी में थाम लेना
ढलती उम्र में भी सजना बस तेरा ही पयाम लेना...

उठा के सर जीयी हूं झुकवा यह सर ना देना
आखरी सांस आये, तेरी बाहों का सुकून देना...

कुछ भी हुआ हो बेजा बिसरा तुम उसको देना
हर हसीं लम्हे को दिल में गहरा बसाये रखना...

जब याद मेरी आये तो चुपके से रो तू लेना
जग को सुना कर दुखड़ा अहसान तुम न लेना...

खुशियों के तुम सौदागर खुशियां लुटाते रहना
सुबहो शाम तितलियों को बागों की बहार देना...

जानती हूं मैं कबसे तुम खुद इश्क़ हो गए हो
सच इसी वजह से तुम मेरे वुजूद हो गए हो...

फिर भी हूँ मैं इंसां, देवता ना  बन सकी जो
तुम को जुदा में खुद से कभी ना सह सकी मैं...

यह जन्म मेरे जाना कुछ वैसा ही निबाह देना
अगली ज़िन्दगी में तुम मुझे अपना इल्म देना...

तेरी सलामती ही है मकसद मेरी ज़िंदगी का
खुश रहे तू हरदम यह मौज़ू मेरी बंदगी का...

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