अमर कहानी,,,,,,
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लगता है जब
खोये जा रहा है सब कुछ
होता है एहसास
काश रह तो पाए कुछ कुछ,
लगने लगती हैं फ़ानी
वो 'चाहिए' 'ना चाहिए' की
फहरिश्तें
वो तरह तरह के नाते और रिश्ते,
वो अना और ग़ुरूर
वो क़रीब होना
और रहना दूर दूर,
खुल जाती है आँखें
ख़्वाहिशें सिमट आती है
मौत के अनजाने डर से
ज़िंदगी लिपट जाती है,
हो जाता है बेमानी
वो तेरा और मेरा
लगने लगता है जीवन
एक जोगी वाला फेरा,
जीवन का
आधार है क्या!!
देह, धन, सोच और रूतबा
या परे इनके
जीने का एक जज़्बा,
छुआ जाना
होने की उस परत का
जहाँ होता है वजूदे ज़िंदगी
थामे हुये हाथ मौत का !!!!
काश रुक कर
हम देख पाएँ
सच यह ज़िंदगी का
काश हम बढ़ा ले जाएँ
जज़्बा ये बंदगी का,
ख़ुश हो सके हम
जो मिल जाये ले कर
झूम सके मस्ती में
तहे दिल से बस दे कर,
नहीं घट सकती है
दौलत यह रूहानी
युग युग से लिखी जा रही है
इस तरह ये अमर कहानी !
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