Wednesday, 28 October 2020

हृदय मस्तिष्क देह और आत्मा...: विजया



हृदय मस्तिष्क देह और आत्मा 

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फुसलाती है वांछाएँ 

हृदय को,

बना देता है बंधक; आकर्षण 


मस्तिष्क को,

कर देती है उद्दीप्त; वासनाएँ

देह को,

प्रेम मात्र प्रेम भी 

करता है उपभोग 

आत्मा का..


टूट सकता है 

हृदय,

डगमगा सकता है 

मस्तिष्क,

छोड़ देता है अंतत: साथ 

तनु,

और आत्माएँ ? 

हो जाती है आत्माएँ भी 

विपाशित...


किंतु यदि...

करे कोई पोषण 

हृदय का,

दे निरंतर प्रोत्साहन 

मस्तिष्क को,

करे पूजन 

गात का,

और करे प्रभरण

आत्मा का...


तो


देगा ताल स्वरमेल में 

हृदय,

करेगा चिंतन संवेदन में 

मस्तिष्क,

होंगे चालित एकत्व में 

शरीर,

और हमारी आत्माएँ ?


हो सकेगी 

स्वतंत्र 

स्वावलंबी 

आत्माएँ हमारी...

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