मैले सिक्के,,,,
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अंतरंग और बहिरंग
एक दूजे का
अपना ही तो होता है
प्रेम में,,,
लुभाता है सौंदर्य
हर परिवर्तन का,
कर देता है आनन्दित
मन मस्तिष्क को,
आ जाता है
विचित्र सा ठहराव जीने मे
एकरसता से किंतु ;
प्रवाह की निरंतरता
ही तो है
जीवंतता जीवन की,,,
हाँ ! गुज़र जाते हैं
कुछेक बदलाव भी
होकर सबब
मायूसियों के भी
उदासियों के भी,,,
ये उदासियाँ
ये मायूसियाँ
नहीं है क्या अर्जन
हमारे ही अपने प्यार का,
खर्च कर उन्हें
कर सकते हैं हम हासिल
ख़ुशियाँ कई गुनी,,,
आओ ना !
पा लें आज फिर से
वही मोहक मुस्कान
वही उन्मुक्त हँसी
वे ही सुरीले गीत
वो ही उमंगें
उड़ा कर ये मैले सिक्के
उदासियों और मायूसियों के,,,
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