Thursday, 26 March 2020

कगार पर : विजया


कगार पर...
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खड़े हैं इस पल हम
ज़िंदगी के कगार पर
मौत के भी कगार पर...

दिया है माहौल और वक़्त
इस क़हर ने हमको
बिना किसी आग्रह के
ख़ुद में झांकने के लिए
बहुत कुछ आसपास का
मापने जोखने के लिए
जानने समझने के लिए
औरों को और खुद को भी
 'जस का तस' देखने के लिए...

कर दें माफ़ हम ख़ुद को
ख़ुद को पहुँचाई चोटों के लिए
दबा कर दिल को
जो कुछ जीया हमने उसके लिए
किसी के भी लिए भी
कुछ भी नकारात्मक सोचा उसके लिए...

भूल पायें हम
किसी ने था दिल हमारा दुखाया
समझ और नासमझी में
हम को था सताया
भरमाया फुसलाया और बहलाया
फ़ायदा हमारी कोमलता का उठाया
समझ कर कमजोरी हमारी शालीनता को
अपना हर स्वार्थ सधाया
गलत समझा था हमको
हमारे सही इरादों पर
सवाल था उठाया...

चले गए तो
ना होगा कोई भी बौझा हम पर
बने रहे तो
होगा मुमकिन
बेहतर समझ के संग जीना हम पर...

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