देखे थे मैं ने रंग,,,,
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जब मैं ने
बना ली थी अपनी आँखें
खोला था उनको होले से,
देखा था मैंने
रंगों को पिघलते
साँचों में ढलते
दूसरे रंगों के क़रीब आते
एक दूजे से चिपकते
चिपटते सटते लिपटते ,,,
देखे थे मैं ने रंग जो
त्वचा में सोख जाते हैं
जैसे त्वचा हो कोई बेढ़ब सा काठ
कुछ वैसे रंग भी जो
छलक कर फिसल कर
बिखर जाते हैं
त्वचा हो जैसे कोई घुटा हुआ शीशा,,,
देखे थे मैं ने रंग जो
जीवन की तरह जम से जाते हैं
मौत में मिल जाते हैं
एकजुट हो जाते हैं
जंग खा जाते हैं
उबल जाते हैं,,,
देखे थे मैं ने रंग जो
नहीं पढ़ने देते नक़्शों को,
उमड़ घुमड़ आते हैं,
उथल जाते हैं
अतिक्रमण से होकर,
अति प्रेम दर्शाते हैं
मनोमस्तिष्क की सीमाओं से परे जाकर,,,
देखे थे मैं ने रंग जो
रेत में भी ख़ूब खेल लेते हैं
एक साथ पी लेते हैं
पानी भी, कोकटेल भी...खून भी,
बोर हो जाते हैं
सेक्स हो जाते हैं
धरती चीर कर उभर आते हैं
लुक छुप कर छू लेने के बाद
ना जाने कहाँ ग़ायब हो जाते हैं,,,
देख लिए हैं मैं ने रंग जो
हर बार हार जाते हैं
हर हाल में हताश रहते हैं
हवा के, सहारे के,
आसरे के, पनाह के, अनजाने उद्धारक के
इंतज़ार में होते हैं,,,
देखे थे मैं ने रंग जो
अजीब से ठंडाते हुए
जैसे विज्ञान में
कार्य और कारण के रिश्ते,
फ़र फ़र फहराते हुए
जैसे कोई परचम आकाश में,
लगातार ऊँचाईयों पर चढ़ते हुए
जैसे हो पर्वतारोही कोई,
सब को परास्त करते हुए
जैसे हो योद्धा कोई,
छूट कर आगे बढते हुए
जैसे प्यार से ज़बरन पकड़ा बच्चा हो कोई
क़दम क़दम बढ़ाते हुए
जैसे परेड में केडेट कोई,,,
देखे हैं मैं ने रंग
वस्तुओं के बीच फँसे चिपके
वो ही जो भर देते हैं
ख़ाली जगहों को
नज़र और नज़रियों को
चाय की ख़ाली प्यालियों को,,,
देखा है मैं ने
रंगों को सफ़ेद झूठ बोलते हुए,
सफ़ेद साफ़ और पाक नहीं
मगर बहुत ख़ुश दिखते हैं वे अपने लिए,
दुखों द्वन्दों दुविधाओं पर
आवरण बने हैं वे रंग
ख़ुद को ही धोखा देते
कहकहे लगाते रंग,,,
देखा है मैं ने
बेगाने थे रंग
एहसासों के लिए
महसूसा है फिर
कुछ भी हों चाहे
नहीं है रंग यहाँ कोई भी
हम जैसों के लिए,,,
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