Friday, 11 May 2018

सुर ताल : विजया


सुर ताल....
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प्रेम डगर प्रयाण क्रम में
अहंकार भुलाना होता है
शब्दों का बेढब शोर मिटा
सुर ताल मिलाना होता है...

स्व हित देखूँ पल प्रति पल
ध्येय यही क्या मात्र सबल
अहम मम आग्रह से दूर कहीं
सूत्र 'वयम'  रचाना होता है...

तन की बातें धन की बातें
बन जाती क्यों मन की बातें
जा परे भौतिक तृष्णाओं से
बस 'चाह' को जीना होता है...

अस्मिता की थोथी परिभाषा
विकृत हो जाती निज भाषा
ऐन्द्रिक सुख बना अति प्रबल
क्या प्रेम जताना होता है....

अर्पण समर्पण का सुख तो
बिरलों को प्राप्य हुआ करता
निज दोषों के तर्पण हेतु भी
संकल्प दोहराना होता है....

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