Monday, 21 December 2020

सहस्रार...

 

सहस्रार,,,

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पाने को 

कहते हैं संसार 

खो देना सब कुछ 

कहलाता 

सहस्रार,

है उन्मत्तता 

परमानंद 

नहीं होता जिसका 

कोई आकार,,,

ना चाहूँ मैं 

ऐसा सहस्रार 

मुझे तो प्रिय 

समग्र संसार,

अपना लूँ स्वत: 

सहस्र कमल दल 

जब जब जाना हो 

उस पार,,,

जी लूँ 

निज जीवन का सार 

अपना कर 

जगती का व्यवहार,

स्वीकारूँ 

दुःख सुख को समरूप 

करूँ ना 

कोई मैं प्रतिकार,,,

हो चाहे 

अपना मार्ग दुश्वार

गंतव्य का हो ना कोई

प्रकार,

क्या सम्भव है विराग 

जीये बिना 

अभिसार

हो यह अंतर शोध 

लगातार,,,


(कविता के पृष्ठभूमि में कुछ तंत्र और ध्यान....या यूँ कहें परमनोविज्ञान की बातें हैं जो नोट्स के रूप में कमेंट्स सेक्शन में दी गयी है...उनके अवलोकन की सादर अनुशंसा.)

Notes :


सात चक्रों की बात आती है : मूलाधार,स्वाधिस्थान, मणिपुर,अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार. सहस्रार एक भिन्न विषय हो जाता है यहाँ तक कि कुछ विद्वान इसे चक्र तक नहीं मानते क्योंकि इड़ा और पिंगला का प्रभाव नहीं होता इसमें. 

कुछ इसे सर्वोपरि और तुरीय अवस्था का प्रतीक मानते हैं.


१. सहस्रार परम तत्व का स्थान है. इसी स्थान से मनुष्य स्व भाव की वासना से मुक्त हो कर ब्रह्म भाव के सत्य की और बढ़ता है तथा समाधि अवस्था को प्राप्त करता है. अगर शरीर का पूर्ण प्राण एक हो कर सहस्त्रार चक्र में केंद्रित हो जाता है तो व्यक्ति निश्चय ही समाधी अवस्था को प्राप्त कर लेता है, जहां पर उसका अस्तित्व ब्रह्म में विलीन हो जाता है.आध्यात्मिक द्रष्टि से यह एक अत्यंत ही उच्चतम अवस्था कही जा सकती है जहां से व्यक्ति विविध ब्रह्मांडीय रहस्यों तथा सत्यों से परिचित होने लगता है. 


२.सहस्रार कोई मार्ग नहीं है। जब हम मार्ग शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो उसका मतलब होता है - एक सीमाओँ में बँधा, स्थापित रास्ता। सीमा में बाँधने के लिए आपको एक भौतिक स्थान की जरूरत होती है। सहस्रार कोई भौतिक स्थान नहीं है। शरीर के भूगोल में उसकी मौजूदगी है, मगर वह किसी भौतिक स्थान का प्रतीक नहीं है। इसलिए, उससे जुड़ा कोई मार्ग नहीं है।

सभी देवताओं में शिव सबसे बलवान और ऊर्जावान हैं। इसका मतलब है कि वह सक्रीयता(एक्शन) के प्रतीक हैं, मगर वह भी कई बार सहस्रार में होने के कारण उन्मत्त(नशे से भरे) रहते हैं।


३.रामकृष्ण परमहंस काफी समय सहस्रार अवस्था में थे

इसे लेकर कई कहानियां हैं मगर एक प्रभावशाली उदाहरण होगा, तोतापुरी और रामकृष्ण परमहंस का। रामकृष्ण सहस्रार में बहुत अधिक रमे हुए थे इसलिए उनका लंबे समय तक जीवित रहना मुश्किल था। क्योंकि यह ऐसा स्थान नहीं है, जहां आप भौतिक शरीर में बने रह कर धरती पर मौजूद रह सकते हैं। वह आनंदपूर्ण और शानदार अवस्था है, मगर वह शरीर में बने रहने लायक स्थान नहीं है, वह ‘जाने वाला’ स्थान है। आप बीच-बीच में उसे छूकर वापस आ सकते हैं। जब कोई व्यक्ति वहां लंबे समय तक रहता है, तो उसका शरीर साथ छोड़ देता है।


४.आपने सुना होगा कि तोतापुरी ने शीशे का एक टुकड़ा लेकर रामकृष्ण के आज्ञा चक्र पर वार कर दिया ताकि सिर्फ परमानंद में तैरते रामकृष्ण को स्पष्टता और बोध तक नीचे लाया जाए। क्या परमानंद में तैरना अच्छी बात नहीं है? यह बहुत बढ़िया है मगर उस स्थिति में आप न तो काम कर सकते हैं और न ही कुछ प्रकट कर सकते है। यह स्थिति नशे जैसी होती है। यह अवस्था बहुत बढ़िया और अस्तित्व संबंधी रूप में शानदार होती है, मगर आप उन अवस्थाओं में काम नहीं कर सकते। चाहे आप काम कर भी लें, तो आप बहुत प्रभावशाली नहीं होंगे। यह भौतिक और अभौतिक के बीच एक धुंधली दुनिया है।


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