तरंगें मेरे सोचों की...
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कितनी रंगीन है
ये तरंगें मेरे सोचों की,
चंचल चपल तितलियां
लेकर रंग फूलों और पत्तियों से
पहुँचा रही है चहुँ दिशि
स्पंदन मेरे चिंतन के...
लिया हैं लाल से
साहस और बलिदान
ले ली है पीले से
आशा और ख़ुशी
मिलकर
श्वेत की पवित्र शांति संग
उभर आया है
रंग शरबती
मेरे सोचों के
खिले खिले फूलों में...
नकारात्मकता के काले रंग को
लगा कर गले
सफ़ेद की मासूम सकारात्मकता ने
बना है मेरा 'ग्रे मैटर'
समा कर जो पत्तियों में
खिला रहा हैं अधिकाधिक
मेरे फूलों को
कर रहा है सहज ही सिद्ध
भावना और विवेक का सामंजस्य ही तो
सौंदर्य है मानव का...
नहीं नकारा है मैं ने
अस्तित्व उलझे केशों का
स्वीकारा है उसको भी तहे दिल से,
आवश्यक है सह प्रतिपक्ष भी
समग्र जीवन जीने के लिए
खिला देती है और अधिक
ये उलझने भी
रंग मेरे फूलों और पत्तियों के...
प्रतीक्षा में है
मेरे बंद नयन
समाया हैं जिनमे उद्यान मेरा,
व्याकुल है
लाली मेरे अधरों की
पाने को स्पर्श
उस गर्माहट का
जो आओगे लेकर तुम
केवल मेरे लिए
मुसकाऊँगी मैं
खिल खिलाऊँगी... नाचूँगी मैं
तितली की तरह
समा जाएगा जब तू भी
मेरे रंगे चमन में...
---विजया (07.12.2020)
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