तरह तरह के चेहरे,,,
############
लिखा है मेरी क़िस्मत में
देखूँ मैं असली चेहरे
चलता हूँ साथ लेकर
तरह तरह के कई चेहरे,,,,
एपिसोड -१
********
जसुदा,,,
#####
पहनाया था मुखौटा ऐसा
बना कर औलाद किसकी
देखी जो हक़ीक़त
ज़मीं पावों तले थी खिसकी,,,,
पहने माँ बाप के चेहरे
दम भरते थे जो ममता का
ख़ुदगर्ज़ मकसदों से
करते थे हिसाब गुजश्ता का,,,
देखा किया वहीं पर
एक चेहरा था खुदा सा
जो अंदर वही था बाहिर
कुछ भी न था जुदा सा,,,
उस मूरत जसुदा की ने
अपनाया था यक ग़ैर को
उसी का था ये जो माद्दा
पाला था किसी शेर को,,,,,
असली नक़ली की बातें
कौन जानेगा उस से बढ़ कर
दुनिया को देखता वह
अस्प अपने ही पे चढ़कर,,,,
गजश्ता=विगत, अस्प=घोड़ा
No comments:
Post a Comment