पत्थर भी तुम मोम भी..
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मौन भी और स्वर भी
मानव हो और ईश्वर भी
स्थिरता हो और गति भी
भाव भी और मति भी
देह सम्पूर्ण और रोम भी
पत्थर भी तुम मोम भी.....
विराग के भाव
अनुराग की अभिव्यक्ति
विनम्रता कोमलता
अपरीमित शक्ति
सूर्य भी तुम सोम भी
पत्थर भी तुम मोम भी.....
सागर से गहरे और ठहरे
नदी से कल कल बहते
छुई मुई से नाज़ुक
वट वृक्ष से सब सहते
धरा भी तुम व्योम भी
पत्थर भी तुम मोम भी.....
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