स्वयं स्वयं को बूझ गया,,,,,
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जब जब टूटा सूत्र मेरा
गाँठे दे दे कर जोड़ लिया
जटिल ग्रंथियों में बंध कर
'मैं सूत्रधार' ,मैं उलझ गया,,,,,,
अँधियारों में था भटका
झाड़ झंकाड़ में फंसा था मैं
चोटें पत्थरों की ख़ूब सही
फिर रस्ता अपना सूझ गया,,,,,
निरपेक्ष नहीं कुछ जीवन में
सापेक्ष सत्य है जीवन का
चुनना जब छोड़ दिया मैंने
भेद मैं सारे समझ गया,,,,,
रिश्ते नाते दुराव लगाव
थी सीमाएँ सब की अपनी
जब से असीम से जुड़ पाया
स्वयं, स्वयं को बूझ गया,,,,
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