रंग उसके दर्द के,,,,,
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उतरी थी चाँदनी
हल्की सी नीली रंगत के साथ
झिलमिल चाँदी सा रंग लिए
उसकी लटों में,,,,
जगा दी थी
मादक रजनीगंधा ने
तीव्र अभिलाषा
मन से तन के
तन से आत्मा के
स्पर्श की,,,,,
जीत लिया था
प्यार की सच्चाई भरे
काव्य मरु उद्यान ने
उसकी आँखों को
करके सृजित
कल्पना मनहर कला की,,,,
करती है चित्रित वह
अपने प्रेम को
आधा अधूरा सा
इन दिनों
अपनी ही त्वचा के केनवास पर
पहना है जहाँ उसने
स्वयं के कोमल हृदय को
एक वस्त्र की तरह,,,,
देखो ना !
झलक रहे हैं
रंग उसके दर्द के
घुले हुए से
उसकी कविताओं में,,,,
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