Thursday, 20 December 2018

मुझ को जैसे : विजया



मुझ को जैसे....
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ख़याल आते हैं मुझे
कुछ थमे थमे से
मेरे बन्द होंठों के पीछे
हो कोई क़ैद जैसे....

मेरा स्पर्श
कर पाता है क्या
पुलकित तुम को
कर देती है रोमांचित
छुअन तुम्हारी
मुझ को जैसे...

क्या मेरी तपती मुस्कान
पिघला पाती है
उस बर्फ़ को
जमी है जो
इर्द गिर्द तुम्हारे दिल के,
गरमाहट तुम्हारे तबस्सुम की
पिघला देती है
मुझ को जैसे .....

किसी ग़ैर के अधरों पे
मेरे नाम की आवाज़
जगा देती है क्या
तुम्हारे सोये कोनों को,
हो जाता है जगराता सा
दिलो जिस्म में
मुझ को जैसे....

क्या देता है मेरा होना
सुख-चैन तुम को,
देता है सुकून
साथ होना तुम्हारा
मुझ को जैसे....

ख़याल आते हैं मुझे
कुछ थमे थमे से
मेरे बन्द होंठों के पीछे
हो कोई क़ैद जैसे....

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