Friday, 14 December 2018

शाश्वत लहरें



शाश्वत लहरें
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खींच लेता हैं 
एक अजीब सा असर
मेरे दिल को 
दूर समंदर की तरफ़,
आती जाती रहती है मन में 
सीगल्लों के 
क्रँदन की आवाज़ें,,,,,

बनी रहती है जीवन में 
शाश्वत लहरों की दास्तान
रगड़ते पीसते हुये चट्टानों को 
रेत को ले जाते हुये 
कटार सी तीव्र समुद्री हवाओं के बीच
रखते हुये विद्यमान फिर भी 
शांति और प्रेम 
उपद्रवों और अस्तव्यस्तता के बीच,
और हिजरी है फ़िट 
सागर और तट की भिड़ंत 
दस्तानों जैसी ही,,,,,

बाँट देता है संगीत मुझे 
दो अविभाज्य हिस्सों में 
बस यही तो गाथा है मेरी 
बिलकुल खाड़ी जैसी ही, 
रखूँगा किंतु मैं संजोकर 
अपनी रूह में वो तराना 
जो बजता रहा था
सागर किनारे,,,,,,

सुन सकता हूँ आज भी मैं 
उन लहरों को जो 
टूट गयी थी तट को छूकर,
माना कि 
मैं चला आया हूँ बहुत दूर 
फ़िर भी पहुँच ही जाती है 
वो ही समयातीत लहरें 
मेरी यादों का अवशेषों बन कर,,,


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