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कौन समझेगा तासीर हमारे तल्ख़ अश्कों की,
इनमें मातम मौत का नहीं ,ज़िन्दगी का है
* * * * * * *
रूठे हैं मुझ से या टूटे हैं ज़माने से ये इल्म नहीं ,
सुना है अशआर मेरे लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ा करते हैं वो.
* * * * * *
हम नहीं तो क्या हमारा अफसाना उनके दिल में है
बाज वक़्त खुद को खुद ही नश्तर चुभाया करते हैं वो.
* * * * * *
हमारी तौबा का औरों को क्या खुद हमको ऐतबार नहीं.
हम उनसे नहीं तो उनके अपनों से मिला करते हैं,
* * * * * *
तेरा ख़याल भी तुझ सा ही दिखाई देता है,
चाहे तुझे जो भी ,वही अपना दिखाई देता है.
* * * * * *
चाहता है दिल से जो उनको ,नज़र आता है उनसा ही
अक्स देख कर उसका उसी में , खुश हुआ करते हैं हम.
कौन समझेगा तासीर हमारे तल्ख़ अश्कों की,
इनमें मातम मौत का नहीं ,ज़िन्दगी का है
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रूठे हैं मुझ से या टूटे हैं ज़माने से ये इल्म नहीं ,
सुना है अशआर मेरे लफ्ज़ दर लफ्ज़ पढ़ा करते हैं वो.
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हम नहीं तो क्या हमारा अफसाना उनके दिल में है
बाज वक़्त खुद को खुद ही नश्तर चुभाया करते हैं वो.
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हमारी तौबा का औरों को क्या खुद हमको ऐतबार नहीं.
हम उनसे नहीं तो उनके अपनों से मिला करते हैं,
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तेरा ख़याल भी तुझ सा ही दिखाई देता है,
चाहे तुझे जो भी ,वही अपना दिखाई देता है.
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चाहता है दिल से जो उनको ,नज़र आता है उनसा ही
अक्स देख कर उसका उसी में , खुश हुआ करते हैं हम.
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