Wednesday, 24 August 2022

जश्ने मोहब्बत : विजया



जश्ने मोहब्बत...

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बंद कर के दरवाज़ा 

मुँह फेर लिया था तू ने 

बेपरवाह हो कर 

करते हुए बेक़दरी 

मेरे बहते हुए आंसुओं की..


यही मकाँ था 

जिसे लाख कोशिशों के बाद भी 

ना बना पाई थी मैं 

घर अपना..

तुम्हारा भी, मेरा भी...

काश तुमने मुझे सुना होता...


आज हाज़िर हूँ मैं 

उसी दहलीज़ पर 

अपने वजूद का जश्न मनाने 

जो पा सकी थी फिर से मैं 

हुई थी मैं जब मुख़ातिब

इस दर-ओ-दीवार से 

बाहिर की दुनिया से...


टूटा हुआ पलस्तर-खिले खिले रंगीन फूल 

बंद दरवाज़ा-मेरा आज़ाद रौं रौं 

हँसती खिलती गा रही मैं 

सब मिलकर 

सुना रहे हैं दास्तान 

मेरे खोने और पाने की...


सुनकर गीत मेरे 

चला आए शायद तू भी  

होने को शरीक 

दिल ओ जान से 

इस जश्ने मोहब्बत में 

जहां नहीं है ज़रूरत 

किसी अनमने 'और' की...

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