Tuesday, 8 February 2022

टूटे हैं ख़्वाब : विजया

 

टूटे हैं ख़्वाब...

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कैसे हैं ये उदासियों के घेरे 

ये ग़म के बादल  घनेरे 

काश हो पाते ये बस 

जोगी वाले चंद फेरे,

समझ लिया था मैने जिसे 

रूह का अबोला इजहार 

था वो जुमलों में लिपटा 

महज़ जिस्म का एक व्यवहार,

बह गयी थी मैं हिस 

जज़्बात के दरिया में 

उतार कर भँवर में मुझ को 

चल दिया था खैवय्या

ना जाने किस नैय्या में,

आज टीस रहे हैं 

ज़ख़्म जो उस ने थे दिये 

टूट गया है प्रेम का धागा 

ना जाने इनको कैसे सिये,

बेजान बुत सी हो गयी हूँ मैं 

ना जाने कब की बिन सोयी हूँ मैं

आँखें सूनी सूनी सी है 

बिन आंसू रातों की रोयी हूँ मैं,

बिछुड़ कर चला गया 

किए थे  जिसने अहद 

ज़िंदगी भर के साथ के 

नाउम्मीदियों में डूबी हूँ मैं

टूटे हैं ख़्वाब 

एक आख़री मुलाक़ात के...

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