Tuesday, 8 February 2022

हार के साथ ही जीत है....

 

हार के साथ ही जीत है...

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गुज़रते वक़्त के साथ 

बढ़ता गया है माज़ी 

घटता गया है मुस्तकबिल 

ज़ख़्मी हुआ है वक्त 

बंट बंट कर टुकड़ों में...


कहने लगा है वक्त 

इस सच को बार बार,

बाँटा है तुम ने ही 

तीन हिस्सों में मुझको

अपनी सहूलियत की ख़ातिर, 

मैं तो हाल हूँ 

निख़ालिस हाल...


टुक बाज आओ

अपनी फ़ितरत ए तफ़रीक से 

बाँट दिया है कितना कुछ इसने 

भले और बुरे में 

नेकी और बदी में 

गुनाह और सबाब में 

अपने और पराये में 

ख़ुशी और ग़म में...


तोड़ डाला है कितना कुछ 

अधूरे नज़रिए ने,

अता कर दी है 

भागती हुई ज़िंदगी 

बिखरी बिखरी सोचों ने,

दे डाली है सजा 

होड़ में दौड़े जाने की...


सुनो ! ना कोई दुश्मन है 

ना ही कोई मीत है 

देख लो ज़िंदगी की डोर को 

हार के साथ ही तो 

जुड़ी हुई हर जीत है...

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