नियम आकर्षण का....
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निर्मित है सब कुछ ऊर्जा से
करेंगे प्रेषित हम ब्रह्मांड को
ऊर्जा जिस प्रकार की
आएगी लौट कर वैसी ही ऊर्जा
हमारे अस्तित्व को,
कर पाते हैं आकर्षित हम
सकारात्मक या नकारात्मक को
अपने विचारों एवं कर्मों के अनुसार
कुछ ऐसा ही तो है
नियम आकर्षण का...
हमारे विचार करते हैं सृजन
हमारी भावनाओं का
भावनाएँ रचती है कर्म हमारे
और कर्म करते हैं रचित
जीवन हमारा,
आवश्यक है तारतम्य और संतुलन
विचारों, भावनाओं एवं कर्म में,
अत: कुछ भी मात्र औढा हुआ
नहीं बन सकता है विषय वस्तु
आकर्षण नियम का,
ना ही हो सकती है अपेक्षा स्वयं से
किसी भी त्वरित परिवर्तन की,
घटित होती है सकारात्मकता
जब हम स्वयं ही हो पाते हैं
यथार्थ रूप आकर्षण नियम का
होते हुए संतुलित यथार्थ दृष्टि के साथ
रखते हुए खुला मस्तिष्क
महत्ति सम्भावनाओं के प्रति...
बहुत ही सुंदर ब्लॉग है आपका। अगर इसके सेटिंग में जाकर FOLLOW बटन को ACTIVE कर लें ताकि आपके ब्लॉग को नियमित रूप से फोलो कर सकूँ । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय।
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