Thursday, 23 April 2020

दो रंग,,,,



~~~दो रंग~~~

आलमे तन्हाई में,,,
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जिसने साथ न दिया मेरा
आलमे तन्हाई में
उससे क्या उम्मीद करे
अपनी इस रुसवाई में,
मेरा खुदा मेरे साथ रहा
मातम और शहनाई में,
रहूँ में यक सा मौला
इज़्ज़त या बदगुमाँई में
चलने में क़ायम मेरे होश रहे
समतल में और खाई में,
पढ़ सकते हैं इबारत हम
जो लिखी गयी
बिन डुबोये कलम
जमाने की सियाही में,
रूह ओ जिस्म के दरमियाँ
समझ के भरम ही तो है
नज़र आते हैं दोनो
एक ही परछाई में,,,,

२)
ख़ुशबू ए पुरवाई में,,,
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जाने कैसी मस्ती ये
इस ख़ुशबू ए
पुरवाई में,
घायल हम तो हो ही  गए
उनकी मासूम किरदार
अदाई में,
लब खुले कुछ कहने को
सोच के टुक रुक से ही गए
उनकी नादान
हयाई में,
खो बैठे हम यकायक क्यों
रंगो नूर की
रानाई में,
कह दिए फिर लाखों शेर हमने
शोख़ हमदम की
सानाई में,,,

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