Friday, 8 February 2019

ठंडी हवा की कहानी : विजया

थीम सृजन
(ठंडी हवा की कहानी : धूप लगे सुहानी)
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आबो तस्नीम
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बहुत सताते हो
जब जब तुम
तेज़ ठंडी हवा बन
सामने से
चले आते हो,
मेरे चेहरे पर
मानो चपत सी लगाते हो,
हाँ रूहो जिस्म को सहलाते हो
ठहर कर चंद लम्हे
मुझे जी जान से
बहलाते हो
मगर चुपके से
दबे पाँव
ना जाने कहाँ
लौट जाते हो.....

बहुत भाते हो
जब जब धूप बन
तवानाई का सरमाया ले
पीछे से
चले आते हो,
शिद्दत से
मेरी पीठ को गरमाते हो
थपथपाते हो,
मेरे ज़र्रे ज़र्रे को
रब्बानी छुअन से
तपाते हो,
दे कर हसीं एहसास
दिली सुकूं के मगर
साँझ की तरह ढलते ढलते
छांव से हो जाते हो.....

जानते हुए तुम को भी
अहसासे अदम तहफ़्फ़ुज़ से
घबराया करती हूँ,
इस तज़ाद को
बेतज़ाद हो कर
तस्लीम कर लेती हूँ
और आबो तस्नीम से
ख़ुद के वजूद को
भर लेती हूँ
बाद रतजगों के
महसूस कर
तेरी वफ़ा को
तेरे आग़ोश की गिरफ़्त में
एक नया प्यार
जी लेती हूँ ....

(तवानाई=ऊर्जा, रब्बानी=दिव्य/divine, तज़ाद=प्रतिकूलता, तस्नीम=स्वर्ग का एक झरना, अदम तहफ़्फ़ुज़=असुरक्षा/insecurity)

(शुक्रिया साहेब का इस नज़्म को शेप देने में शरीक होने के लिए ❤😍)

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