Tuesday, 1 January 2019

फ़रिश्तों को भी : विजया

थीम सृजन
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(तेरा मेरा साथ रहे)

फरिश्तों को भी..…
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   (1)
क्या कहूँ मैं तुम से
समझ पा रही हूँ
तुम्हारे अनकहे भावों को
विलुप्त मौन के दर्द को
प्रेम प्रेरित असमंजस को....

चाहती हूँ
तुम्हारे सरोकारों को अहमियत देना
तुम्हारी पीड़ा को सुरक्षा कवच देना
तुम्हें फिर से हँसाना
तुम में वो ही जोश और होश भर देना
तुम्हारी आँखों में वो दिलकश चमक लौटा लाना
जो रही है तुम्हारी अनूठी दौलत....

माना कि
पहुँच गए हो तुम उस मक़ाम पर
मिट गए होंगे बहुत से भेद और विभेद
बदल गयी होगी दृष्टि
जीवन को देखने समझने और आत्मसात करने की
लेकिन मेरे लिए तो हो
साथी मेरे बचपन के
मेरे रंगरसिया
भरे हैं जिसने इंद्रधनुष के सारे रंग
मेरे जीवन चित्र में
मेरे संगी
परवाह है जिस को हर पल मेरी....

हालाँकि मैं भी चली हूँ ज़रूर
लेकिन मेरी अपनी गति और चाल है
शायद एक बिंदु है जहाँ हम खड़े हैं
एक ही ज़मीन पर
वो है प्रेम और समझ का
वही याद दिलाता है मुझे
तुम्हारी ही कही बात
सापेक्ष है सब.....

तुम से जो होता है
हो सकता है वो स्वीकार्य
तुम्हारे गुण धर्मों के तहत
लेकिन मेरे संस्कार.......?
चलो देवता भी कर डालते है ग़लतियाँ
वो कहते है ना
फ़रिश्तों को भी तो है
इजाज़त गिर जाने की.....

(2)

देखो एक राज मार्ग है
और एक तारा भी है भोर का
हो जाए कुछ नयी शुरुआत.....

नदी भी है
धारा भी है
महासागर भी है
तुम्हारे और मेरे लिए पानी रखे हुए
किंतु हमें तो चाहिए ना बस
चाय के दो प्याले चाँदनी भरे....

ऊँचा पर्वत है
नीची घाटी भी
डाल सकता है पलायन हमें घोर मुश्किल में
साफ़ सुथरी झील है
छोटी सी नहर है
तुम्हारे और मेरे लिए रखे हुए पानी
लेकिन हमें तो चाहिए ना बस
चाय के दो प्याले चाँदनी भरे....

नदिया और धारे
महासागर, नाले और झीलें
तुम्हारे लिए पानी
मेरे लिए भी पानी
ऊँचे पहाड़ों से ऊपर
नीची घाटियों के तले
कुछ भी तो नहीं है पावन
कुछ भी तो नहीं है ज्ञात
सिवा चाँदनी भरे चाय के दो प्यालों के.....

चलो ठीक है यह भी
फ़रिश्तों को भी तो है इजाज़त गिर जाने की.....

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