पर्याप्त होना ही पर्याप्त...
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पुनर्जन्म
मानव का ही नहीं
मेरा भी होता है,
युगों से मैने भी खेले हैं खेल
आरम्भ-समापन-आरम्भ के
दे देता है जिन्हें मानव
जन्म जन्मांतर योनियों के नाम,
फ़र्क़
दृश्य और अदृश्य हाथों का है
ख़्वाब और तबीर का है
तसव्वुर और हक़ीक़त का है
मगर फ़र्क़ कहाँ
कहीं फ़र्क़ बस समझ का तो नहीं है...
साहिल से साहिल
समंदर से समंदर
महानद से महानद
अनगिनत कहानियों को
देखा,झेला और अपनाया है
ना जाने किस किस का राज
मेरे अंतर में समाया है...
मनु का अरुण केतन
समा जाना द्वारका का
धीवर का अनुनय
सेतु रामेश्वरम का
अमृतघट और विषपान शंकर का
कभी सिंदबाद
कभी सफ़र गुलीवर का
कभी कोलंबस
कभी वास्को द गामा
कभी कप्तान कुक
कभी रोज़-जेक नामा
तूफ़ाँ भी देखे अमन भी
पोशिदा सागर में
गौहर है और चमन भी...
छूकर सागर जल को
बढ़ती रही थी मैं
संग लहरों के
उतरती चढ़ती रही थी मैं,
जल में रहना है जीवन मेरा
मुझ में जल मौत मेरी है
रहने दो आज यहीं पर ऐ दोस्त !
वफ़ा और बेवफ़ाई की बातें बहुतेरी है...
हवा के रुख़ को
पहचाना था माँझी ने
कंपास की अहमियत
जानी थी साझी ने
ग़ैरों को मैने पार लगाया था
अपनों ने मुझे
बार बार डुबोया था
जब जब मेरा वजूद
चट्टानों से टकराया था
सागर ने
मेरे घावों सहलाया था...
दुस्साहस किसी का
भटका देता था मुझ को
अनायास घनी बालू में
फँसा देता था मुझ को
अनगिनत दस्तानों की तफ़सील
आज अधूरी है
पर्याप्त होना ही
होता है पर्याप्त दुनिया में
क्या प्रभु की कोई भी कृति
हर दृष्टि से यहाँ पूरी है ?
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