झलक दिखाई नहीं देती...
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बेहद शोर है इस सन्नाटे में
मुझ को मेरी
आवाज़ सुनाई नहीं देती,
जीवन की आना पाई में
खो गई खुद की तन्हाई में
बाहर निकलने की इस से
मुझे राह दिखाई नहीं देती,
ग़म के बादल छाये हैं,
मैं रोती हूँ बरसातों में
गीले मौसम में मेरी
नम आँख दिखाई नहीं देती,
नज़र के सामने होता जब
नज़रंदाज़ किया करती हूँ मैं
ना जाने कहाँ अब मैं खोजूँ
एक झलक दिखाई नहीं देती...
(मेरी पुरानी अनगढ़ रचना)
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