तड़फ...
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कैसी है ये आस
ऐसे क्यूँ एहसास
मैं हूँ दरिया के पास
फिर भी कैसी ये प्यास,
क्यूँ सराब से भरमाऊँ
ये तड़फ समझ ना पाऊँ ...
कोई हुआ ना गुनाह
नहीं रखी कोई चाह
चला अपनी ही राह
चाहे आह हो या वाह
ग़म के जाम क्यूँ छलकाऊँ
ये तड़फ समझ ना पाऊँ...
मैने पाया जब तब
जैसे रूठा मेरा रब
हुआ मुनसिफ़ बेअदब
सजा दे दी बेसबब
कैसे खुद को बचाऊँ
ये तड़फ समझ ना पाऊँ...
हुआ ऐसा ये अजीब
फेंक डाला है सलीब
भूला दोस्त ओ रक़ीब
आया खुद के क़रीब
सुकूँ रूह का मैं पाऊँ
ये तड़फ समझ ना पाऊँ...
सराब=मृगतृष्णा
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