कब पहचाने जाते हैं...
++++++++++
राह पे चलने वालों का क्या
धूल उड़ाते जाते है,
प्रेम में जो बर्बाद हुए वो
कब पहचाने जाते हैं...
शूलों ऊपर फूल खिले हैं
सुगंध वही और रंग वही
वही जीना, अभिनय भी वही है
अन्दाज़ वही और ढंग वही...
विष अमृत के अंतर को
कैसे समझूँ कैसे जानूँ,
तेरे हाथों से दिया है तुम ने
बस पीना, इतना मानूँ...
तट पर थम कैसे जानोगे
सागर की गहराई को,
जाना है उस पार, क्यों रोते
केवट की उतराई को...
क़ैद हो गए अपने घर में
क्या जानो तुम सृष्टि को
दृश्य देख कर बहल गए हो
जाँचो अपनी दृष्टि को...
दृश्य, दृष्टा और पृष्ठभूमि का
रिश्ता जब तुम जानोगे,
सच क्या है और क्या है मिथ्या
स्वतः सहृदय हो मानोगे...
No comments:
Post a Comment