Sunday, 3 April 2022

पछतावा : विजया

 पछतावा...

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बड़ी अजीब चीज़ है 

यह पछतावा भी,

ना तो सही फ़ैसले 

आपका पीछा छोड़ते हैं 

ना ही ग़लत फ़ैसले,

एक ख़लिश सी बनी रहती है 

काश ऐसा होता 

तो ऐसा हो जाता 

काश ऐसा हो पाता 

तो ना जाने क्या क्या हो जाता,

कुछ भी कहो 

कशम कश का यह दौर भी मज़ेदार

एक नए तजुर्बे सा, 

कुछ भी कहो

काश और पछतावे में भी 

बड़ा दोस्ताना होता है....


(पुराने काग़ज़ों से)

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