कुरबतें और फ़ासले...
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कुरबतें
अंधा कर देती है
फ़ासले
चाहे एक कदम पीछे हो कर बनाए जाय
असलियत के एहसास करा देते हैं...
क्यों हिचकिचाना
लौटो ज़रा सा पीछे
हो जाएगा इल्म
कि परिंदा जानता हैं
उसे लौटना कहाँ है..
समझ जाओगे तुम भी
कितना सा फ़र्क़ है
थामे रखने और छोड़ने के बीच...
(पुराने काग़ज़ों से)
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